छत्तीसगढ़ : शिक्षा, स्वास्थ्य और स्वच्छता की महत्व को समझने लगे है बैगा जनजाति…बैगा जनजाति के लोग अपने ही भाषा मे प्रकशित पुस्तके पढ़ रहे है…

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इलियास मोहम्मद
कवर्धा : छत्तीसगढ़ के कबीरधाम जिले में निवास विशेष पिछड़ी जनजाति बैगा के जीवन में शिक्षा, स्वास्थ्य और स्वच्छता से जुड़ने के बाद सकारात्मक बदलाव देखने को मिल रहा है। बैगा जनजाति के कक्षा पहली और दूसरी के बच्चे अब अपनी ही बोली-भाषा में तैयार की गई बैगानी भाषा में प्रकाशित किताबें पढ़ रहे है। इससे बैगा जनजाति की नई पीढ़ियों को शिक्षा से जोड़ने में और मदद भी मिल रही है। राज्य शासन के राज्य शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद छत्तीसगढ़ ने इस किताब को तैयार किया है। अब जल्द ही बैगा-बोली भाषा में पहाड़ा और बारहखड़ी भी प्रकाशित होने वाली। इस दिशा में राज्य शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद ने अपना काम भी शुरू कर दिया है।

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उल्लेखनीय है कि मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल के विशेष प्रयासों से राष्ट्रीय जनजाति साहित्य महोत्सव का आयोजन हुआ। इस सम्मलेन में राज्य विभिन्न जिलों में निवासरत पांच विशेष पिछड़ी जनजातियां बैगा, अबूझमाड़िया, कमार, पहाड़ी कोरबा और बिरहोर के प्रतिनिधिमंडल ने शिरकत की। कबीरधाम जिले से विशेष पिछड़ी बैगा जनजाति के प्रदेश अध्यक्ष श्री ईतवारी बैगा भी शामिल हुए। श्री ईतवारी बैगा ने राष्ट्रीय जनजाति साहित्य महोत्सव में मिले सम्मान और प्रदेश सरकार के जनकल्याणकारी योजनाओं से उनके जीवन में आ रहे व्यापक बदलाव के अनुभवों को साझा किया। जिले के विशेष पिछड़ी बैगा जाति का मानना है कि राज्य सरकार की नीति से समाज के पढे लिखे-युवक-युवतियों को स्थानीय स्तर पर शाला संगवारी, मितानिन कार्यकर्ता, आंगनबाड़ी कार्यकर्ता, सहायिका, सहित जिला स्तर पर सीधी भर्ती में प्राथमिकता देने से समाज के लोगों में शिक्षा के प्रति चेतना आई है। शिक्षा के महत्व को समझने लगे है। शिक्षा, स्वास्थ्य और स्वच्छता के प्रति आई जागरूकता से जीवन शैली में सकारात्मक बदलाव भी देखी जा रही है। समाज का मानना है कि शिक्षा ही सभी समस्याओं का हल है, और यही शिक्षा ही बेहतर कल देने की हमारी मदद करेगी।

छत्तीसगढ़ में निवासरत विशेष पिछड़ी संरक्षित जनजातियों की रहन-सहन, बोली-भाषा, वेश-भूषा, कला, संस्कृति और उनके रीति-रिवाजों को मूलस्वरूप में बनाए रखने के लिए राज्य सरकार हर संभव प्रयास कर रही है। शिक्षा से जोड़ने के लिए विशेष पिछड़ी बैगा जनजातियों के बच्चों को लिए कबीरधाम जिले के पंडरिया विकासखण्ड के ग्राम पोलमी में बालक और बालिका के आवासीय विद्यालय संचालित है। यहां कक्षा पहली से दसवीं तक कक्षा संचालित है। बालक और बालिका के लिए सौ-सौ सीट निर्धारित है। इसी प्रकार बोडला विकासखण्ड के ग्राम चौरा में आवासीय विद्यालय खोली गई है। कवर्धा में बैगा बालक छात्रावास संचालित है। पंडरिया विकासखण्ड के ग्राम कुकदूर में लगभग 14 करोड़ 50 लाख रूपए की लागत से राज्य शासन द्वारा विशेष पिछडी बैगा जनजाति के पोस्ट मैट्रिक विद्यार्थियों के लिए छात्रावास तैयार किया जा रहा है। इस छात्रावास में बालक और बालिका के लिए 250 सीट अलग-अलग निर्धारित है।

छत्तीसगढ़ में कबीरधाम प्रदेश का एक मात्र ऐसा जिला है, जहां विशेष पिछड़ी जनजातियों में शामिल बैगा जनजाति की सर्वाधिक जनसंख्या और आबादी इस जिले में निवास करती है। मैकल पर्वत श्रृंख्ला से लगे जिले के बोडला और पंडरिया दो विकासखण्ड के सूदूर और दुर्गम पहाड़ियों पर अधिकांश बैगा बसाहवट गांव है। जिले में कुल 263 चिन्हांकित विशेष पिछड़ी बैगा जनजाति की गांव, बसाहवट है। जिसमें सर्वाधिक गांव बोडला विकाखसण्ड में है। बोडला विकासखण्ड में विशेष पिछड़ी बैगा जनजाति गांव 183 और पंडरिया विकासखण्ड में 75 आबादी गांव है। हालांकि इसके अलावा प्रदेश के अन्य राजनांदगावं, कोरिया, मुंगेली, बिलासपुर और नवीनतम जिला खैरागढ़, गौरेला पेंड्रा-मरवाही के वनांचल क्षेत्रों में यह जनजाति निवास करती है।

ईतवारी बैगा का मानना है कि संचालनालय आदिम जाति अनुसंधान एवं प्रशिक्षण संस्थान, छत्तीसगढ़ शासन द्वारा राष्ट्रीय जनजाति साहित्य महोत्सव में छत्तीसगढ़ राज्य के विशेष संरक्षित जनजातियों के समाज प्रमुखों एवं बैगा समाज की कला, साहित्य, हुनर को संरक्षण, संवर्धन करने के लिए अवसर दिया गया। समाज के और प्रबृद्धजन समारू बैगा, मुन्नी बाई बैगा, कामू बैगा, सुंदर बैगा, तीजन बैगा, लमना बैगा, तितरू बैगा, केसर बैगा का भी मानना है कि पहली बार विशेष संरक्षित जनजाति बैगा के समाज प्रमुख और कलाकारों ने किया अपनी हुनर का प्रदर्शन किया।

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